इस पुरुषवादी समाज में महिला मुक्ति का कोई रटा-रटाया फार्मूला नहीं हो
सकता। जैसे - जैसे महिलायें पुरुषों के क्षेत्र में दखल देती जायेगी, ये
टकराव और बढ़ेगा। आखिर अपने हिस्से की सुखसुविधा पुरुष ऐसे ही तो नहीं
छोड़ देंगे। परंतु मुक्ति का कारवां भी इसी संघर्षमय पथ से जायेगा।
महिलायें भी ये मानना छोड़ दें कि चीख पुकार मचाने, अपने पूर्व प्रेमी के
खिलाफ एफ.आई.आर. कराने, तथा कठोर कानून बनवाने से शोषण की व्यवस्था
समाप्त हो जायेगी। अपनी जीविका के लिए
आत्मनिर्भर बनना सिर्फ एक शुरूआत है। उससे कहीं अधिक आवश्यक है
वर्जनायें तोड़ना। शारीरिक श्रम के वे काम भी सहर्ष करना जिन्हें
महिलायें भी पुरुषों के काम ही मानती रही हैं, जैसे - स्टेशन पर आधा
सामान स्वयं उठाना न कि खुद पानी की बोतल टांगकर खड़े हो जाना और पति के
कंधों पर बोझ लाद देना, गैस का सिलेंडर सरकाते हुए किचन तक ले जाना
इत्यादि....... । इस संबंध में मुझे निरमा वाशिंग पाउडर का वह विज्ञापन
पसंद है जिसमें हेमा, रेखा, जया और सुषमा कीचड़ में फंसी कार को धक्का
देने के लिए अपने वस्त्रों की परवाह न करते हुए कीचड़ में कूद जाती
हैं।..................... जरा सोचिये कि बंद कार को धक्का लगवाने से
स्त्री मुक्ति की राह खुलेगी या स्कूटी बंद हो जाने पर किसी पुरुष से
किक ल्रगवाने से......
- 2013 की पोस्ट
- 2013 की पोस्ट
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