Friday 19 December 2014

असम : जैसा मैंने देखा -


तेजपुर से काजीरंगा की ओर बढ़ते ही कुछ ही समय बाद महान ब्रहमपुत्र नदी के दर्शन होते हैं। बताता चलूं कि‍ लगभग पूरा असम ही मैदानी राज्‍य है जो चारों ओर से पर्वतीय राज्‍यों से घि‍रा है। हर वर्ष ब्रह्मपुत्र की बाढ़ असम के अधि‍कांश भाग को जलमग्‍न कर देती है। बाढ़ के समय सुदूर राज्‍यों का देश से संपर्क न कटे इसके लि‍ए राजमार्ग और रेल की पटरि‍यों को आमतौर पर 10 से 15 फुट ऊंचा बनाया गया है। बाढ़ के दौरान दोनों ओर दूर - दूर तक सि‍र्फ जलमग्‍न खेत ही दि‍खते हैं। लगभग ऐसा ही हाल बि‍हार में कोसी नदी के भराव क्षेत्र में है। रास्‍ते में दोनों ओर चाय के बागान दि‍खते रहते हैं जि‍ससे आप स्‍वत: ही ये जान जाते हैं कि‍ असम सर्वाधि‍क चाय उत्‍पादक राज्‍य क्‍यों है। असम जाकर आप ये भी समझ पायेंगे कि‍ चाय पहाड़ पर ही नहीं बल्‍कि‍ मैदानी इलाके में भी होती है। फि‍लहाल असम के चाय के वे पौधे जो 50 से 100 वर्ष पुराने हो चुके हैं, उन पर संकट मडरा रहा है। लगातार कीटनाशकों के प्रयोग से पेड़ तो खराब हो ही रहे हैं, स्‍थानीय जीव जंतु भी खतरे में हैं। ये भी जान लीजि‍ए कि‍ आपकी सुबह की चाय की प्‍याली भी कीटनाशक रसायनों से अछूती नहीं है। इसीलि‍ए कुछ जागरूक चाय उत्‍पादकों ने आर्गेनि‍क चाय उत्‍पादन प्रारंभ कर दि‍या है ताकि‍ उनके बागान भी बचे रहें और चाय पीने वाले की सेहत भी। ये भी बता दूं कि‍ ऑर्गेनि‍क चाय (जि‍से पैदा करने में शतप्रति‍शत प्राकृति‍क तरीकों का इस्‍तेमाल कि‍या जाता है) की कीमत लगभग 1000 रु. प्रति‍ कि‍ग्रा. है। यानि‍ आप जो वाह ताज करते रहते हैं, वह उतनी सेहतमंद नहीं है जि‍तना दावा कि‍या जाता है।यह दावा कि‍या जाता है कि‍ चाय में एंटीऑक्‍सीडेंट तत्‍व होने के कारण यह सेहत के लि‍ए वरदान है।
चाय के बागानों के मध्‍य से गुजरते हुए आप कब काजीरंगा की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। राजमार्ग से ही आपको गैंडा व अन्‍य जानवर दि‍खने लगते हैं। काजीरंगा राष्‍ट्रीय उद्यान को एक श्रृंगी भारतीय गेंडे के कारण वि‍श्‍व धरोहर का दर्जा प्राप्‍त है। लगभग 467 वर्ग कि‍मी. में फैला ये अभ्‍यारण फि‍लहाल संकट में है। 467 वर्ग कि‍मी. कोई बहुत बड़ा क्षेत्र (केवल 20 x 23 कि‍मी.) नहीं है । आप यदि‍ ये सोच कर खुश हो रहे हैं कि‍ अब भी देश में इतने जंगल बचे हैं, तो थोड़ा कम खुश हों। अपनी सींग के कारण भारतीय गैंडे का नि‍रंतर अवैध शि‍कार कि‍या जा रहा है तथा इनकी संख्‍या बहुत तेजी से कम हो रही है। जि‍स बात ने सबसे ज्‍यादा दु:खी कि‍या, वह यह है कि‍ मैंने काजीरंगा अभ्‍यारण इलाके में हजारों झुग्‍गि‍यां बसी देखी हैं जो जंगल को काटकर बनी हैं। इनमें हजारों की संख्‍या में बांग्‍लादेशी घुसपठि‍ये रह रहे हैं। स्‍थानीय ड्राइवर ने बताया कि‍ इन बांग्‍लादेशि‍यों को असम के राजनेताओं का संरक्षण प्राप्‍त है तथा अब तो इनके आधार कार्ड भी बन रहे हैं। ये घुसपैठि‍ये बि‍ना कि‍सी चिंता के जंगल के बीच रह रहे हैं क्‍योंकि‍ इस जंगल में बाघ नहीं है और प्राय: सभी जानवर आग से डरते हैं। ये घुसपैठि‍ये जंगल की ही लकड़ी को ईंधन के रूप में इस्‍तेमाल कर रहे हैं तथा जंगली जानवरों - वनमुर्गी, हि‍रण, सांभर, भैसा इत्‍यादि‍ को मार कर खाते हैं। लकड़ी काटना तथा शि‍कार करना आमदनी का आसान जरि‍या है।
अब भी वन्‍य जीव व प्रकृति‍ बची हुई है। यदि‍ जल्‍द ही घुसपैठ के मुद्दे पर राजनीति‍ बंद नहीं हुई तो यकीन मानि‍ये यह देश बहुत कुछ खो बैठेगा।