Wednesday 3 September 2014

हमारा नजरि‍या और हमारे वि‍चार

हम नि‍रंतर बदलते ही रहते हैं। कहने का मतलब हमारा नजरि‍या और हमारे वि‍चार व्‍यक्‍ति‍ सापेक्ष होते हैं। जो हमें अच्‍छा लगता हो या जि‍सकी बातों से हम सहमत हो, उसकी हर चीज - बोलना, खाना, पीना, रहना, वेशभूषा, वि‍चार इत्‍यादि‍ सब अच्‍छे लगने लग जाते हैं। और जि‍ससे हमारी पटरी नहीं बैठती, उसकी प्राय: सभी बातें बुरी ही लगती हैंं। ....................... लेकि‍न क्‍या हमें अपने वि‍चार इतने आसानी से बदल जाने देने चाहि‍ए?.................................................... यह बात मोदी जी की बेशभूषा को देखकर मन में आयी। उन्‍होंने इस समय अपने सुरुचि‍पूर्ण पहनावे से देश को ही नहीं वरन दुनि‍या को भी प्रभावि‍त कि‍या है। मोदी कुर्ता बाकायदा फैशन है इन दि‍नों। सच कहूं तो मुझे उनका शौक और फैशनपरस्‍त होना अच्‍छा लगता है और उनकी वेशभूषा का कलर कॉम्‍बीनेशन भी बहुत अच्‍छा होता है। हालाकि‍ मेरे वामपंथी मि‍त्र मुझे बूर्जूआ कह सकते हैं। परंतु मेरी यह व्‍यक्‍ति‍गत राय है कि‍ व्‍यक्‍ति‍ को शौक जरूर पालने चाहि‍ए।........................... पर एक बात मैं अपने संघी भाईयों या दक्षि‍णपंथी भाईयों के मुख से हमेशा से सुनता आया हूं कि‍ नेहरू के कपड़े पेरि‍स धुलने जाते थे (हालाकि‍ इस बात प्रामाणि‍कता कुछ भी नहीं है क्‍योंकि‍ आज से 100 साल पहले भी भारत में ड्राइ्रक्‍लीनिंग न सही, क्‍लीनिंग की व्‍यवस्‍था तो थी ही। और न भी रही हो तो पेरि‍स से कपड़े धुलवाने के बजाए नए कपड़े सि‍लवाना बेहतर वि‍कल्‍प होता).................. क्‍या ऐसा नहीं है कि‍ जो हमें अच्‍छा लगे उसका शौक, शौक और जो बुरा लगे उसका शौक, वि‍लासि‍ता...... ?