Friday 14 November 2014

आरती या स्‍वयं का अवमूल्‍यन

मैं बहुत पहले से ऐसा मानता रहा हूं कि‍ ईश्‍वर के सामने स्‍वयं को दीन हीन रूप में प्रस्‍तुत करना गलत है। आरती या प्रार्थना ऐसी हो जो हमें ईश्‍वर से जोड़े न कि‍ उसकी व अपनी नज़रों में गि‍राये। ...................इस मामले में हिंदी फि‍ल्‍मों के कुछ गीत बेहतरीन हैं, जैसे - ''तू प्‍यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्‍यासे हम''
या
''तेरी है जमीं, ये तेरा आसमां''
या
''हमारी ही मुट्ठी में संसार सारा'',
या
''ज्‍योति‍ कलश छलके'',
....... इत्‍यादि‍

ईश्‍वर की महानता और वि‍शालता को साबि‍त करने के लि‍ए इंसान को स्‍वयं को तुच्‍छ साबि‍त करने की आवश्‍यकता नहीं है। जि‍सने यह संसार रचा है, उसकी महि‍मा के वर्णन के लि‍ए चाटुकारि‍ता आवश्‍यक नहीं है। ईश्‍वर महान है और रहेगा परंतु उसके लि‍ए मैं स्‍वयं को मूर्ख, खल और कामी मानने को तैयार नहीं हूं।

नेहरू एक अंतरराष्‍ट्रीय नेता

पहली पंचवर्षीय योजना में ही icar, इसरो, drdo, csir, एनपीएल, ncl....की स्थापना...........जल विद्युत एवं सिंचाई के लिए तमाम विशाल बाँधो का निर्माण, हरित क्रांति.......देश को वैज्ञानिक सोच की ओर ले जाना.......और भी न जाने क्या - क्या जो सीमित संसाधनों के साथ एक हाल ही में आज़ाद हुआ देश कर सकता था। ...........नेहरू जैसा देशभक्त और प्रधानमन्त्री बेहद आवश्यक था उस दौर में....लोगो का क्या जो कोई भी आरोप लगाने के पूर्व जानकारी लेना या इतिहास के पन्ने पलटना भी उचित नहीं समझते।

सच्‍चाई ये है कि‍ आजादी के समय नेहरू की छवि‍ एक अंतरराष्‍ट्रीय नेता या स्‍टेट्समैन की थी। वे उस समय पश्‍चि‍मी जगत में भारत का ऐसा चेहरा थे जि‍से पहचाना जाता था। और नवर्नि‍मित राष्‍ट्र के समक्ष पहचान का संकट कैसा होता है, इसको समझाने की आवश्‍यकता नहीं है। दुनि‍या आपको सि‍र्फ आपके प्रति‍नि‍धि‍यों के माध्‍यम से पहचानती है, ठीक वैसे ही जैसे दक्षि‍ण अफ्रीका का नाम लेते ही नेल्‍सन मंडेला याद आते हैं। ..................................................
मुझे ये भी अफसोस रहता है कि‍ लोग नेहरू पर सहजभाव से पश्‍चि‍मी वि‍चारों से अभि‍प्रेत होने का आरोप लगा देते हैं, वे भूल जाते हैं कि‍ 'डि‍स्‍कवरी ऑफ इंडि‍या' के लेखक की भारतीय परंपरा की समझ कैसी रही होगी, और 'द गि‍लि‍म्‍पसेंज ऑफ वर्ल्‍ड हि‍स्‍ट्री' जैसी पुस्‍तक जेल में ही लि‍ख डालने वाले की वि‍श्‍व इति‍हास पर कि‍तनी पकड़ रही होगी ............................ पर आलोचकों को इससे क्‍या.................. न ही उन्‍होंने इन दोनों कि‍ताबों को पढ़ा (मेरा दावा है कि‍ देखा तक नहीं होगा) होगा, न कभी पढेंगे....................... उन्‍हें तो सि‍र्फ लेडी माउंटबेटेन को सि‍गरेट पि‍लाते नेहरू ही याद हैं.............