मैं बहुत पहले से ऐसा मानता रहा हूं कि ईश्वर के सामने स्वयं को दीन
हीन रूप में प्रस्तुत करना गलत है। आरती या प्रार्थना ऐसी हो जो हमें
ईश्वर से जोड़े न कि उसकी व अपनी नज़रों में गिराये।
...................इस मामले में हिंदी फिल्मों के कुछ गीत बेहतरीन हैं,
जैसे - ''तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम''
या
''तेरी है जमीं, ये तेरा आसमां''
या
''हमारी ही मुट्ठी में संसार सारा'',
या
''ज्योति कलश छलके'',
....... इत्यादि
या
''तेरी है जमीं, ये तेरा आसमां''
या
''हमारी ही मुट्ठी में संसार सारा'',
या
''ज्योति कलश छलके'',
....... इत्यादि
ईश्वर की महानता और विशालता को साबित करने के लिए इंसान को स्वयं को
तुच्छ साबित करने की आवश्यकता नहीं है। जिसने यह संसार रचा है, उसकी
महिमा के वर्णन के लिए चाटुकारिता आवश्यक नहीं है। ईश्वर महान है और
रहेगा परंतु उसके लिए मैं स्वयं को मूर्ख, खल और कामी मानने को तैयार
नहीं हूं।