समाज सुधार के हमारे अब तक के प्रयास महिलाओं - लड़कियों की आचार संहिता
तक करने तक सीमित रहे हैं। हर घटना के बाद यही नसीहत दी जाती है कि लड़की को
ऐसा नहीं करना था-वैसा नहीं करना था - यहाँ नहीं जाना था - ऐसे कपडे नहीं
पहनने थे- लज्जा महिलाओं का गहना है - ब्ला - ब्ला …....
....पर इसका कोई ज्यादा लाभ दिखाई नहीं दिया है। निर्भया के बाद भी घटनाएं बदस्तूर जारी हैं। दुधमुंही बच्चियों के साथ बलात्कार की न जाने कितनी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 02 दिन पहले किसी विकृत मानसिकता ने 100 वर्ष की बुजुर्ग महिला के साथ बलात्कार कर दिया। और राह चलती लड़कियों को घूरती आँखे हमारी राष्ट्रीय सभ्यता बन गयी है।
....पर इसका कोई ज्यादा लाभ दिखाई नहीं दिया है। निर्भया के बाद भी घटनाएं बदस्तूर जारी हैं। दुधमुंही बच्चियों के साथ बलात्कार की न जाने कितनी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 02 दिन पहले किसी विकृत मानसिकता ने 100 वर्ष की बुजुर्ग महिला के साथ बलात्कार कर दिया। और राह चलती लड़कियों को घूरती आँखे हमारी राष्ट्रीय सभ्यता बन गयी है।
नैतिकता और संस्कार की घुट्टी हमारे समाज पर अब प्रतिरोधी (resistant) हो
गयी है। न ही हमारा स्वर्णिम भूतकाल, न ही धार्मिक आख्यान और न ही नैतिक
उपदेश काम आ रहे हैं।
हमें इस स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने उपचार की पद्यति को बदलना होगा। हमें अपने लड़कों को सुशिक्षित और संस्कारित करना पड़ेगा कि उन्हें स्त्रियों से कैसे पेश आना चाहिए। जिस तरह हमारी माएँ लड़कियों को ससुराल के लिए मानसिक रूप से तैयार करती हैं, उसी तरह लड़कों को भी प्रशिक्षित करने पर कुछ बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।.......
Nov. 2017
हमें इस स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने उपचार की पद्यति को बदलना होगा। हमें अपने लड़कों को सुशिक्षित और संस्कारित करना पड़ेगा कि उन्हें स्त्रियों से कैसे पेश आना चाहिए। जिस तरह हमारी माएँ लड़कियों को ससुराल के लिए मानसिक रूप से तैयार करती हैं, उसी तरह लड़कों को भी प्रशिक्षित करने पर कुछ बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।.......
Nov. 2017
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