Monday 24 September 2018

राष्ट्रविरोधी, समाज विरोधी, धर्म विरोधी, वामी, कामी

समस्या ये नहीं है कि इस देश मे अब लगभग हर मुद्दे पर तू तू-मैं मैं होती है। समस्या ये भी नहीं है कि लगभग हर मुद्दे पर मत और विचारधारा का स्पष्ट विभाजन है। समस्या ये है -
१. राजनीति, फेसबुक, और बेरोजगारी इस देश के युवा को निरंतर हिंसक और प्रतिक्रियावादी बना रही है और इसका निपटारा बहस, तर्क, और मर्यादा को पीछे छोड़ परस्पर विद्वेष, गाली गलौच और हिंसा से हो रहा है।
२. राजनीति प्रेरित सामाजिक मुद्दे इस तरह से लोगों का मानस तैयार कर रहे हैं कि उन्हें भूत/वर्तमान/भविष्य का हर तथ्य एक साजिश नज़र आने लगा है। उनके पास वर्तमान और भविष्य की कोई स्पष्ट योजना नहीं है, लेकिन उन्हें भूत और इतिहास बदलने की बहुत जल्दी है।
३. यहकि, एक-एक कर संवैधानिक संस्थाएं अप्रासंगिक बनाई जा रही हैं। यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट भी
४. कुछ सैकड़ा लोगों की भीड़ पूरे तंत्र पर हावी है। हम निरंतर संकुचित समाज के रूप में तब्दील हो रहे हैं जिसमे लोग जाति, धर्म, स्थानीयता जैसी बातों पर विभाजित हैं।

और इन सबसे बढ़कर ये कि इन मुद्दों पर सोचने, लिखने और दुःखी होने वाले के लिए राष्ट्रविरोधी, समाज विरोधी, धर्म विरोधी, वामी, कामी.......जैसी संज्ञाएँ हैं ही।

फरवरी 2018

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