Monday 24 September 2018

पंडि‍त जवाहर लाल नेहरू के नि‍धन पर संसद में पं. अटल बि‍हारी बाजपेई की श्रद्धांजलि‍

दो दि‍न पूर्व आदरणीय Rama Shankar Singh ने मुझे इस पठनीय गद्य के अनुवाद का दायि‍त्‍व सौंपा था। सो अनुवाद प्रस्‍तुत है -
''पंडि‍त जवाहर लाल नेहरू के नि‍धन पर संसद में पं. अटल बि‍हारी बाजपेई की श्रद्धांजलि‍''
श्रीमान,
एक स्वप्न बि‍खर गया है, एक गीत शांत हो गया है, एक ज्योति‍ अनंत में वि‍लीन हो गयी है। यह स्वंप्न‍ था, भय और भूख से मुक्त दुनि‍या का। यह उस महाकाव्य का गीत था जि‍समें गीता की गूंज और गुलाब की महक थी। यह वह चि‍राग था जो गहन अंधकार से जूझते हुए रातभर टि‍मटि‍माता रहा और हमें राह दि‍खाते-दि‍खाते एक सुबह बुझ गया।
मृत्यु अटल सत्य है और यह शरीर क्षणभंगुर। वह स्वर्णिम तन, जि‍से कल हम चंदन की पवि‍त्र चि‍ता में समर्पित करके आये हैं, उसे एक ना एक दि‍न खत्म होना ही था। लेकि‍न क्या मृत्यु को इतने दबे पाँव आना चाहि‍ए था? जब मि‍त्र नींद के आगोश में थे और प्रहरी सुस्त थे, हमसे जीवन का एक अमूल्य उपहार चुरा लि‍या गया। भारत माता आज शोकग्रस्त है - उसने अपना सपूत खो दिया है। मानवता आज उदास है - उसने अपना भक्त खो दिया है। शांति आज बेचैन है - उसका रक्षक अब आसपास नहीं है। दबे – कुचलों ने अपनी शरणस्थली को गंवा दि‍या है। सामान्य जन के नेत्रों से ज्योति चली गयी है। दुनिया के रंगमंच से मुख्य अभिनेता ने अपनी अंतिम भूमिका का प्रदर्शन करके वि‍दा ले ली है और पर्दे गि‍र गए हैं।
रामायण में महर्षि बाल्मीकि‍ ने भगवान राम से कहा है कि‍ उन्होंने असंभव को संभव बनाया है। पंडि‍त जी के जीवन में भी हमें इस बात की झलक मि‍लती है। वे शांति के उपासक होते हुए भी क्रांति के अग्रदूत थे। अहिंसा के पुजारी होते हुए भी स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार की पैरवी करते थे।
वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हि‍मायती होते हुए भी आर्थिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। वे कि‍सी से समझौता करने हेतु कभी भयभीत नहीं रहे, परंतु भय के वशीभूत होकर उन्होंने कि‍सी से समझौता नहीं कि‍या। पाकि‍स्तान और चीन के प्रति‍ उनकी नीति‍ इस अद्वि‍तीय मि‍श्रण की प्रतीक है। इसमें उदारता भी है और दृढ़ता भी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि‍ उनकी उदारता को कमजोरी समझा गया और कुछ लोग तो उनकी दृढ़ता को जि‍द समझने की भूल करते हैं।
मुझे याद है मैंने एकबार उन्हें चीनी आक्रमण के दौरान उस समय बहुत आक्रोशि‍त अवस्था में देखा था, जब हमारे कुछ पश्चिमी मि‍त्र पाकि‍स्तान और कश्मीर को लेकर उनपर समझौते करने का दबाव बना रहे थे। जब उनसे यह कहा गया कि‍ यदि‍ उन्होंंने कश्मीर को लेकर कोई समझौता नहीं कि‍या तो उन्हें दोनों सीमाओं पर युद्ध लड़ना होगा, तो यह सुनकर वे क्रोधि‍त हो गए और बोले कि‍ यदि‍ आवश्यक हुआ तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे। वे कि‍सी दबाव के चलते बातचीत करने के पक्षधर नहीं थे।
श्रीमान, वे जि‍स स्वतंत्रता के पक्षधर और संरक्षक थे, वह आज खतरे में है। हमें अपनी पूरी ताक़त से इसकी रक्षा करनी होगी। वे जि‍स राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दूत थे, वह भी आज खतरे में है। हमें किसी भी कीमत पर इसकी रक्षा करनी होगी। जि‍स भारतीय लोकतंत्र की स्थापना में उन्होंने सफलता अर्जित की थी, उसका भवि‍ष्य भी अंधकार के घेरे में है। एकता, अनुशासन और आत्म-वि‍श्वास से हमें इस लोकतंत्र को सफल बनाना है। नेता चला गया है, अनुयायी शेष रह गए हैं। सूर्य अस्त हो गया है और अब हमें सि‍तारों की मद्धि‍म रोशनी में ही अपना रास्ता तलाशना होगा। यह परीक्षा की घड़ी है। यदि‍ हम सभी अपनेआप को सशक्त और समृद्ध भारत के महान आदर्श के प्रति‍ समर्पित कर सकें तो वि‍श्व शांति‍ के प्रति‍ यह हमारा अद्वि‍तीय योगदान होगा और यही उनके प्रति‍ हमारी सच्ची श्रद्धांजलि‍ होगी।
उनके नि‍धन से इस सदन को जो क्षति हुई है, उसकी भरपायी नहीं की जा सकती। तीन मूर्ति भवन को ऐसा नि‍वासी फि‍र नहीं मि‍लेगा। ऐसा जीवंत व्यक्तित्व, विपक्ष को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति ‍ और परि‍ष्कृत भलमनसाहत हमें भविष्य में देखने को नहीं मि‍लेगी। मतभेदों के बावजूद हमारे मन में उनके महान आदर्शों, निष्ठा, देशप्रेम और अदम्य साहस के लिए सिर्फ सम्मान ही है।
इन शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा के प्रति‍ अपनी श्रद्धांजलि‍ व्यक्त करता हूँ।

फरवरी 2017

No comments:

Post a Comment