इस बात पर शायद ही किसी का मतांतर होगा कि विज्ञान से तकनीकी और
प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को बदल कर रख दिया है। आज से लगभग 20 वर्ष
पूर्व आनंद भवन इलाहाबाद में प्रो. यशपाल का एक व्याख्यान सुना था जिसमें
उन्होंने कहा था कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास की दर इतनी तीव्र है
कि हर 05 साल में मानव जाति के पास अब तक उपलब्ध सारी सूचनाएं दोगुनी हो
जाती हैं।
पिछले 30-35 साल में मैंने अपने ठीकठाक होश में न जाने कितने परिवर्तन खुद देखे और महसूस किए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमे कई समस्याओं से निजात दिलाई है। पिछले कुछ सालों में ही भारत से पोलियो जैसी भयावह बीमारी का उन्मूलन हुआ है। इस प्रौद्योगिकीय विकास पर मुग्ध होने के साथ कुछ बातें हैं जो मुझे दुःखी करती हैं। स्मृति के आधार पर कुछ लिख रहा हूँ, बाकी आप लोग जोड़ सकते हैं -
पिछले 30-35 साल में मैंने अपने ठीकठाक होश में न जाने कितने परिवर्तन खुद देखे और महसूस किए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमे कई समस्याओं से निजात दिलाई है। पिछले कुछ सालों में ही भारत से पोलियो जैसी भयावह बीमारी का उन्मूलन हुआ है। इस प्रौद्योगिकीय विकास पर मुग्ध होने के साथ कुछ बातें हैं जो मुझे दुःखी करती हैं। स्मृति के आधार पर कुछ लिख रहा हूँ, बाकी आप लोग जोड़ सकते हैं -
1. हमने कई नदियां और वन लुप्त कर दिए हैं। मेरे बचपन का बयाना नाला अब सच मे नाला है। किसी जमाने मे उसमे नहाया हूँ।
2. नदियों और जलाशयों को हमने अपनी धार्मिक कुप्रथाओं के चलते लगभग मार डाला है। ललितपुर का सुमेरा ताल और बांध निरंतर प्रतिमा विसर्जन से लुप्त होने की कगार पर हैं।
3. आवश्यकता के लिए जंगल मे लकड़ी की कोई कमी नहीं है, पर लालच और व्यवसाय के लिये होनी वाली कटाई कई जंगलों को लील गयी है।
4. गाँवों की निरंतर उपेक्षा और कृषि के घाटे के व्यवसाय में तब्दील होने के कारण गाँवों से शहरों की ओर हुए पलायन ने गाँव और शहर दोनों को उजाड़ दिया है।
5. हम पूरी निर्ममता से जमीन से अयस्क और पत्थरों का उत्खनन कर रहे हैं।
कहने को तो हम विकास कर रहे हैं, पर वास्तव में हम खुद को तबाह कर रहे हैं।
संतुलन का रास्ता हमे स्वयं खोजना होगा।
मार्च 2018
2. नदियों और जलाशयों को हमने अपनी धार्मिक कुप्रथाओं के चलते लगभग मार डाला है। ललितपुर का सुमेरा ताल और बांध निरंतर प्रतिमा विसर्जन से लुप्त होने की कगार पर हैं।
3. आवश्यकता के लिए जंगल मे लकड़ी की कोई कमी नहीं है, पर लालच और व्यवसाय के लिये होनी वाली कटाई कई जंगलों को लील गयी है।
4. गाँवों की निरंतर उपेक्षा और कृषि के घाटे के व्यवसाय में तब्दील होने के कारण गाँवों से शहरों की ओर हुए पलायन ने गाँव और शहर दोनों को उजाड़ दिया है।
5. हम पूरी निर्ममता से जमीन से अयस्क और पत्थरों का उत्खनन कर रहे हैं।
कहने को तो हम विकास कर रहे हैं, पर वास्तव में हम खुद को तबाह कर रहे हैं।
संतुलन का रास्ता हमे स्वयं खोजना होगा।
मार्च 2018
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