Monday 24 September 2018

सनातन धर्म में सबका योगदान

दो लद्दाख यात्राओं और एक भूटान यात्रा के बाद जो कुछ बातें मुझ नास्तिक (यहाँ यह शब्द इसलिए क्योंकि मैं संसार के किसी संस्थागत धर्म के प्रति भावुक नही हूँ) को संमझ आईं वे यह हैं कि -
1. सनातन धर्म सिर्फ हिंदुओ का, अथवा हिन्दू ही सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व नही करते।
2. सनातन धर्म में जो दार्शनिक ऊंचाई दृष्टिगोचर होती है, वह सिर्फ आस्था, परम्परा और मूर्तिपूजा का ही विस्तार नही हैं। सनातन के विकास में बौद्ध, जैन, आजीवक, भौतिकवादी नास्तिक, शून्यवादी, एकेश्वरवाद, नाथपंथ....के साथ साथ सैकड़ो श्रमणों/भिक्षुओं का योगदान है।
3. बुद्ध को अवतार मान लिया, महावीर को नही माना, इससे कोई विशेष अंतर नहीं आता। जब हम दर्शन की बात कर रहे होते हैं, तब निज धर्म और व्यक्तिगत आस्था को एक कोने में रखना ही उचित।
4. बुद्ध को अवतार घोषित करने के कई अन्य कारण भी है, जिससे वर्चस्व बना रहे।
5. बुद्ध का धर्म भी कालांतर में विभिन्न मतों में विभक्त हुआ।
भूटान में तो वज्रयानी परंपरा मांस, मदिरा, सेक्स को भी स्वीकार कर रही है।
6. बुद्ध विहारों में नव प्रशिक्षुओं को उसी तरह पोथी बाँचनी पढ़ रही है, जैसे बनारस का पंडिताई स्कूल हो या मदरसे का घोटा।

7. अब तक का निष्कर्ष यही कि संस्थागत होते ही धर्म का पतन होने लगता है। दार्शनिकता की जगह वर्चस्व की लड़ाई और आर्थिक कारण उभर जाते हैं। ऐसे में विवेकानंद की अप्रोच ही अच्छी कि जहाँ से भी ज्ञान प्राप्त हो, उसे ग्रहण करो। सभी मुक्ति के मार्ग हैं।
पर दिक्कत यही कि मुक्ति की लालसा ही हमे स्वार्थी और लोलुप बना देती है। यही भ्रम है यही माया।

- मई 2018

No comments:

Post a Comment