आज हनुमान जयंती है। त्योहारों से जुड़ी बचपन की यादों में यह दिन
बार-बार याद आता है। बचपन में पिताजी सुबह से ही हनुमान जयंती के जुलूस में
शामिल लोगों को शीतल जल पिलाने की व्यवस्था में लगे रहते थे। पानी की टंकी
को साफ़ करना, केवड़ा और बर्फ डालकर जल को पीने योग्य बनाना....इत्यादि।
मुझे भी शाम का इंतज़ार रहता। मेरे लिए आकर्षण का केंद्र पानी की टंकी चौराहे पर होने वाली युद्ध कलाओं का प्रदर्शन रहता। मेरा यह भी अनुभव रहा है कि जुलूस में शामिल लोगों का उत्साह पानी की टंकी चौराहे पर सबसे ज्यादा तीव्र और मुखर हुआ करता था। चौराहे पर ही स्थित मेरे घर की छत पर सैकड़ो लोगों का जमावड़ा होता । किशोरावस्था तक आते-आते मैं भी पिताजी के साथ सबको पानी पिलाता। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस समय शीतल जल के इतने पंडाल नहीं लगा करते थे। फिर धीरे-धीरे जब हर दस कदम पर पंडालों में शर्बत परोसा जाने लगा तो पिताजी ने जल पिलाने की व्यवस्था बंद कर दी और ये ठीक भी है। जिस कार्य को समाज अपना ले, तो अपना मंतव्य पूरा हो जाता है।
मुझे भी शाम का इंतज़ार रहता। मेरे लिए आकर्षण का केंद्र पानी की टंकी चौराहे पर होने वाली युद्ध कलाओं का प्रदर्शन रहता। मेरा यह भी अनुभव रहा है कि जुलूस में शामिल लोगों का उत्साह पानी की टंकी चौराहे पर सबसे ज्यादा तीव्र और मुखर हुआ करता था। चौराहे पर ही स्थित मेरे घर की छत पर सैकड़ो लोगों का जमावड़ा होता । किशोरावस्था तक आते-आते मैं भी पिताजी के साथ सबको पानी पिलाता। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस समय शीतल जल के इतने पंडाल नहीं लगा करते थे। फिर धीरे-धीरे जब हर दस कदम पर पंडालों में शर्बत परोसा जाने लगा तो पिताजी ने जल पिलाने की व्यवस्था बंद कर दी और ये ठीक भी है। जिस कार्य को समाज अपना ले, तो अपना मंतव्य पूरा हो जाता है।
आज फेसबुक मित्र Dharmendra Goswami
जी ने अपनी वॉल पर इसे ललितपुर का "लोकपर्व" कहा है। निस्संदेह यह पर्व
ललितपुर का लोक पर्व है। जिस तरह ललितपुर का जनसमुदाय तुवन मंदिर के प्रति
अगाध श्रद्धा रखता है और इस जुलूस में शामिल होता है, वह बात इसे ललितपुर
का लोकपर्व ही बनाती है। और यह बात ललितपुर से बाहर रहकर ज्यादा अच्छे से
समझ आती है।
April 2017
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