Monday 24 September 2018

हरितालिका व्रत कथा

मैं पिछले कई साल से तीज़ और करवाचौथ जैसे पितृसत्तात्मक और असमानतावादी त्योहारों के खिलाफ लिखता रहा हूँ।
घर पर आज भी तीज़ का त्यौहार मना। मैंने दिये जलाये, और छोटी सी झांकी सजाने में अपना योगदान दिया। बढ़िया पकवान बने थे मेरे सेवन को। यहाँ तक तो सब ठीक है। उसके बाद बारी आई मेरे कथा बांचने की। बस यहीं पर सारा जायका खराब हो गया। हरितालिका व्रत कथा नाम से जो किताब बाजार में बिकती है, उसका प्रिंट तो खराब है ही, उसमे लिखी और छपी कथा भी बेहद दोयम दर्ज़े की और तथ्य दोषपूर्ण है।
सोच रहा हूँ इसी कथा को कुछ सुधार करके ठीक हिंदी में लिख दूँ। थोडा सा कल्पना का समावेश करके अच्छी सी कथा बन सकती है। किसी के पास इस कथा का प्राचीन संस्करण है क्या?
जो बिक रहा है वो किसी लालची पंडे में लिखा है। उसे न जाने कहा से बर्फ से ढँके कैलाश पर्वत पर बरगद के पेड़ की छाँव मिल गयी। ऐसी ही न जाने कितनी बातें........ खीज में सर भन्ना रहा है।

Sep. 2017

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