Monday 24 September 2018

पंडित जी (प्रोफेसर ओ.पी.मालवीय) को आखि‍री वि‍दाई

इलाहाबाद के उनके घर के बड़े से अध्ययन कक्ष में मार्क्स और लेनिन के साथ ही महात्मा गाँधी, तुलसीदास और विवेकानंद की तस्वीरें फ्रेम में जड़ी हुई थीं। कमरे की दीवारों पर सजीं सैकड़ों पुस्तकों को पलटते हुए कभीकभार 100/- रुपये का नोट भी मिल जाता था।
कहने को तो पंडित जी (प्रोफेसर ओ.पी.मालवीय) इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विषय के प्रोफेसर थे। पर संस्कृत, इतिहास, हिंदी साहित्य पर भी उनका उतना ही अधिकार था।
उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष गुजर जाने के बाद शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया था। मेरे इलाहाबाद पहुंचने तक वे पारंगत शास्त्रीय गायक बन चुके थे। वे निश्चय ही वामपंथी थे। प्रगतिशीलता किसे कहते हैं, उनका जीवन देखकर ही समझा जा सकता है। इलाहाबाद के दक्षिणी भाग में, जहां उनका निवास था, सैकड़ों वृक्ष उन्होंने लगाकर बड़े किये। हम सभी छात्र उनके नेतृत्व में सुबह-शाम दरियाबाद के कब्रिस्तान में पेड़ों को पानी डालने जाते थे। पंडित जी ने उस कब्रिस्तान में ऐसी हरियाली ला दी कि आसपास के लोग वहाँ टहलने आने लगे थे। पंडित जी उस कब्रिस्तान को गुलिस्तान कहते थे। उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक सरोकारों पर खर्च होता था।
इत्तफ़ाक़ से जिस दौर में मैं इलाहाबाद अध्ययन हेतु पहुंचा था, वह दौर बाबरी कांड के बाद साम्प्रदायिक आग में झुलसा हुआ था। इलाहाबाद में साम्प्रदायिक माहौल को बचाये रखने और शांति स्थापित करने में पंडित जी की सक्रिय भूमिका थी। मुस्लिम उन्हें इज़्ज़त की निगाह से देखते थे।
आज मैं जिस हैसियत पर हूँ, वह सब पंडित जी की दी हुई है। ललितपुर से कच्ची मिट्टी जैसा गया था, पंडित जी ने उसे सांचे में ढाल कर आकार दिया। माता-पिता ने तो मुझे जन्म ही दिया था, पंडित जी ने मनुष्य बनाया। 06 वर्ष उनके सानिध्य में रहा। उन्हें स्कूटर पर बैठा के पूरा इलाहाबाद नापता था। वे जिस गोष्ठी में जाते, मैं उनके साथ रहता। उनके सानिध्य में ही रंगमंच से परिचित हुआ। न जाने क्या-क्या देखा, समझा, सीखा। उनका साथ रोज़ किसी नई पुस्तक को पढ़ने जैसा होता।
कल शाम उनका फोन आया था। वे पिछले चार-पाँच दिन से मुझसे बात करना चाहते थे। फोन मिलते ही बोले कि 'मैं तुम्हारी पोस्ट देखता रहता हूँ और पर्यावरण प्रदूषण के प्रति तुम्हारी चिंता देखी। मुझे बहुत खुशी है। मुझे जुकाम है इसलिए ज्यादा बात न कर पाऊँगा। खुश रहो। " मुझे क्या पता था कि वे जाते-जाते मुझे आशीर्वाद देना चाहते थे।
आज रात पंडित जी 85 वर्ष की आयु में इस संसार से अलविदा हो गए हैं। वे देहदान का संकल्प लेकर गए हैं। मुझे नहीं पता कि ऐसा क्या कम हो गया है मुझमे। पर दिल भारी है। उनके बाद वे वृक्ष ही साया हैं जो उन्होंने रोपे थे। ....
पंडित जी अंतिम प्रणाम आपको......आपका शतांश बन सका तो ये जीवन सफल समझूंगा।

 17 सि‍तंबर 2018

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