बचपन से ही मैं अपनी माताजी को घर में आई हर अच्छी मिठाई को सर्वप्रथम
भगवन को भोग लगाते हुए देखता आया हूँ। एकाध बार तो ऐसा भी हुआ कि जिस समय
मैं घर में मिठाई आई, उस समय भगवान के सोने का समय चल रहा था, तो उनके लिए
ग्वाला की बर्फी अलग से आरक्षित कर देने के बाद ही मुझे बर्फी चखने को
मिली। मेरी नज़र इस बर्फी पर शाम तक टिकी रहती।
मैं हमेशा से यही सोचता रहा हूँ कि माता जी किसी नमकीन व्यंजन का भोग क्यों नहीं लगातीं? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जाड़े की रात में प्रभु के समक्ष गरमागरम मंगौड़े और मूंगफली परोस दी जाए। मुझे यह भी लगता कि प्रभु की भी कभी-कभार नमकीन खाने की इच्छा होती होगी।
मैं हमेशा से यही सोचता रहा हूँ कि माता जी किसी नमकीन व्यंजन का भोग क्यों नहीं लगातीं? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जाड़े की रात में प्रभु के समक्ष गरमागरम मंगौड़े और मूंगफली परोस दी जाए। मुझे यह भी लगता कि प्रभु की भी कभी-कभार नमकीन खाने की इच्छा होती होगी।
पर मैं अपनी माताजी को यह कभी समझा न पाया। समझाना तो दूर, उनसे कह भी
नहीं पाया। इसकी वजह सिर्फ यही थी कि मुझे उनकी भावनाएं आहत होने का भय था।
आज भी यह बात लिखने में मुझे जोखिम का अनुभव हो रहा है क्योंकि अब इसे एक
नास्तिक का कथ्य समझा जा सकता है।
अब प्रभु ही तय करेंगे कि उन्हें कभी कभार नमकीन भी खाने की इच्छा होती है या नहीं?
मार्च 2017
अब प्रभु ही तय करेंगे कि उन्हें कभी कभार नमकीन भी खाने की इच्छा होती है या नहीं?
मार्च 2017
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