Monday 24 September 2018

आस्था का उपहास

जो आस्तिक हैं, उन्हें अपने आराध्य की अनंत क्षमताओं पर भरोसा रखना चाहिए। उनके बचाव की या उनकी ओर से धर्मयुद्ध छेड़ने की कोई जरूरत नहीं है। हाँ, अशिष्ट और मर्यादा हीन टिप्पणी पर रोक आवश्यक है। जानबूझ कर ऐसी बात न बोली जाए, जिससे कोई दुःखी हो। पर ईश्वर को लेकर इतना छुई मुई भी न हुआ जाए।
अगर ईश्वर पर प्रश्न उठाना आस्तिक की आस्था का उपहास है तो इसी तर्क के अनुसार अपनी आस्था का सार्वजनिक प्रदर्शन (लाउडस्पीकर, कलश यात्रा, जगह-जगह मूर्ती स्थापना, चौराहे पर बकरा या ऊँट काटना, जुलूस के नाम पर शस्त्र और शक्ति प्रदर्शन....) भी नास्तिकों और अन्य धर्माबलम्बियों को आहत करने की श्रेणी में आ सकता है।
अतएव इस विषय पर सहिष्णु होना ही एकमात्र हल है। प्रतिपक्ष की उपस्थिति को स्वीकार करें, अन्य धर्मों की पूजोपासना पद्यति/ कर्मकांडों को भी बर्दाश्त करें।


अप्रैल 2017

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