Sunday, 6 July 2014

लद्दाख

दाे बार लद्दाख हो आया हूं। बौद्ध कर्मकांडों एवं संघ को नजदीक से देखने का अवसर मि‍ला यद्यपि‍ लद्दाख या ति‍ब्‍बत में मौजूद बौद्ध धर्म अपने वास्‍तवि‍क स्‍वरूप से काफी अलग है। मैं इस बार कई उद्देश्‍यों के साथ गया था। बौद्ध धर्म की वैज्ञानि‍कता एवं तार्किकता से कुछ हद तक मैं प्रभावि‍त रहा हूं। परंतु कि‍सी भी धर्म के रीति‍रि‍वाजों और कर्मकांडों को जाने बि‍ना कि‍सी नि‍ष्‍कर्ष पर पहुचना बड़ी भूल होगी। कर्मकांड किसी भी धर्म का महत्वपूर्ण भाग होते हैं। अत: उनके रीति‍रि‍वाजों को नजदीक से जानना इस यात्रा को एक उद्देश्‍य था।
मैं अपनी यात्रा में यह भी पता लगाना चाहता था कि वहां किस हद तक बौद्ध धर्म की प्राचीन शुद्धता का पालन हो रहा है और किस हद तक उनके उपदेशों को अंधविश्वास ने घेर लिया है या बौद्ध धर्म एवं बुद्ध के सिद्धांतों की बेतुकी मान्यतायें क्या हैं।
मैं यह भी जानना चाहता था कि‍ किस हद तक बुद्ध द्वारा निर्धारित किया गया भिक्षु क्रम सामुदायि‍क सेवा में रत है। क्या यह क्रम सिर्फ अपने लिए तथाकथित जीवन की शुद्धता को बनाये रखने में व्यस्त है अथवा यह सामान्‍य जनमानस की सेवा, परामर्श या उसे आदर्श बनाने में रत है, जैसा कि भगवान बुद्ध चाहते थे।.................. इन प्रश्‍नों के आसपास ही होगा मेरा यात्रा वृतांत............. बस थोड़ा सा इंतजार

No comments:

Post a Comment