सभी जानते हैं कि फेसबुक एक मुक्त आकाश है। जिसे जो मन में आये लिखे/
साझा करे। पर जब हम इस सुविधा को इस्तेमाल किसी को कोसने और गाली देने
में करते हैं, तो मामला गड़बड़ हो जाता है। फेसबुक पर नाथूराम गोडसे फैन्स
क्लब भी है। अब नाथूराम के फेन हैंं तो गांधी को कोसना तो उनका
राष्ट्रधर्म हो ही जाता है। .............. एक मित्र की दीवार पर ऐसी ही
पोस्ट पढ़ी जिसमें दो माह पूर्व इंडिया टुडे की खबर को आधार बनाते हुए
गांधी जी को व्यभिचारी और नारीलोलुप साबित किया गया। ............................
बात दृष्टि की है। आपको जो अच्छा लगता है, आप उस पर यकीन करना चाहते
हैं। मैं ऐसे सैकड़ों आलेख बता सकता हूं जिनमें गांधीजी को संत बताया गया
है और उपर्युक्त सभी आरोपों को एक प्रयोग। ...............आज भी जैन मुनि
किसी की नज़र में संत हैं तो किसी की नज़र में बेशर्म कि जवान
लड़कियों के समक्ष नंगधडंग बैठे रहते हैं। ऐसे लोग उनके त्याग और तपस्या
के बारे में सोचना नहीं चाहते।............... और बात ये भी है कि इस
प्रकार के लेख लिखने के पीछे मंशा क्या है और शब्द-चयन कैसा
है..............मैं चाहूं तो नाथूराम गोडसे के बारे में कुछ भी अनाप-शनाप
लिख सकता हूं, शब्दों और भावों की कोई कमी नहीं है। पर गांधीवाद मुझे ऐसा
करने से रोकता है।.......... दुख ये है कि गांधी को कोसते समय कोई
गांधीवाद पर विचार नहीं करता........ ये गांधी का ही असर है कि इस
लोकतंत्र में किसी को भी कोई भी बकवास करने, गाली देने की छूट प्राप्त
है। जरा विचार करें कि क्या किसी व्यभिचारी के पीछे लाखों का जनसमूह
लगभग 35 वर्ष तक साथ रह सकता है? क्या वजह है कि मोदी जी शपथ लेने के
पहले राजघाट जाते हैं और प्रधानमंत्री की सीट पर बैठने के पहले गांधी की
फाेटो पर पुष्प अर्पित करते हैं?.................
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