Sunday, 6 July 2014

इति‍हासबोध

मैं कि‍सी इति‍हासकार द्वारा दि‍ए गए वृतांत या शोध काे अंति‍म नहीं मान सकता, चाहे वे पश्‍चि‍म के हों या भारतीय। कई पुस्‍तकों और इति‍हास को गहराई से पढ़ने से सि‍र्फ एवं चीज हासि‍ल होती है - इति‍हासबोध। .................. और मेरा इति‍हास बोध यह कहता है कि‍ कि‍सी भी सभ्‍यता या जीवनस्‍तर का एक नि‍यत एवं क्रमि‍क वि‍कास होता है..... ऐसा नहीं होता कि‍ कि‍सी एक क्षेत्र में तो हम प्राैद्योगि‍की के चरम पर पहुंच जायें और दूसरे क्षेत्र में प्राथमि‍क अवस्‍था में हो............ वि‍कास अन्‍योन्‍याश्रि‍त होता है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि‍ केले के पत्‍ते लपेट कर हम मि‍साइल का परीक्षण करें। ........................................ यदि‍ नाभि‍कीय बम या उससे उन्‍नत कि‍सी प्राैद्योगि‍की के होने का साक्ष्‍य है ताे अन्‍य चीजें भी उतनी ही उन्‍नत अवस्‍था में मि‍लनी चाहि‍ए थीं............... हड़प्‍पावासी मृदभांड का प्रयोग करते थे एवं उनकी स्‍थापत्‍य कला/ मूर्तिकला/ बाजार योजना इत्‍यादि‍ प्राथमि‍क स्‍तर की ही थीं............. वे क्रमश: सभ्‍य हो रहे थे और अनुशासि‍त समाज के रूप में वि‍कसि‍त हो रहे थे...................माफ करें नाभि‍कीय बम की तकनीक जानने वाला समाज मृदभांड का प्रयोग नहीं कर सकता, उसकी लि‍पि‍ अवि‍कसि‍त नहीं हो सकती, ...................... हां यदि‍ हडप्‍पा की भवि‍ष्‍य में होने वाली खुदाई में मोबाइल फाेन/ कंप्‍यूटर या संचार प्रणाली के स्‍पष्‍ट सबूत मि‍ल जायें तो नाभि‍कीय बम या उन्‍नत सभ्‍यता की बात 'लॉजि‍कल' हो जायेगी। तब तक मैं अन्‍य सभी कयासों को कपोल कल्‍पना एवं प्राचीन भारत के प्रति‍ भावुकता ही मानूंगा..................

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