Sunday, 6 July 2014

'आप'

यदि‍ सांप्रदायि‍क और जाति‍गत आधार पर वोटिंग होती तो आम आदमी पार्टी की स्‍थि‍ति‍ इतनी शानदार नहीं होती.................दि‍ल्‍ली की जनता ने परि‍पक्‍वता का परि‍चय दि‍या है। पि‍छले चुनाव में 16प्रति‍शत वोट लाने वाली बीएसपी पूरे परि‍दृश्‍य से गायब हो गयी है जि‍सका लाभ 'आप' को मि‍ला। मेरे हि‍साब से दि‍ल्‍ली में ये कांग्रेस और भाजपा दाेनों की हार है। कांग्रेस की इसलि‍ए कि‍ वे जनता का मूड भाप नहीं पाये और आाप काे लगातार खारि‍ज करते रहे। भाजपा की हार इसलि‍ए कि‍ उन्‍होंने मोदी को ही सभी मर्जों की दवा मान लि‍या और बि‍स्‍तर तान के सो गए। ..........................

अब भी समय है कि‍ लोकसभा चुनावों में भाजपा मोदी फैक्‍टर को इतना सशक्‍त न माने। पर आम आदमी पार्टी की सही जीत मैं उस दि‍न मानूंगा जब वह उत्‍तर प्रदेश में सपा और बसपा जैसी पार्टियों को शि‍कस्‍त देगी। दि‍ल्‍ली की शि‍क्षि‍त जनता को समझााना आसान है पर साइकिल और हाथी देखकर मतवाली हो जाने वाली भीड़ को समझााना मुश्‍कि‍ल............
'आप' के पदार्पण के बाद क्‍या हालत हो गयी है परंपरागत राजनीति‍ की..........बहुमत से तीन सीट दूर बैठी बीजेपी भी 'हॉर्स ट्रेडिंग' के जोखि‍म को उठाने को तैयार नहीं है। अब से कुछ वर्ष पहले ऐसी स्‍थि‍ति‍ होती तो अब तक तो मंत्रीमंडल भी तय हो गया होता.........ऐसा भी दि‍न आयेगा कि‍ राजनीति‍क दल सरकार बनाने से कतरायेगे, सोचा न था...................अगर 'आप' ने जैसी संगठनात्‍मक क्षमता दि‍ल्‍ली में दर्शायी है, वैसी ही उत्‍तर प्रदेश में दर्शा दे, तो यकीन मानि‍ये यू.पी. की जनता इतनी त्रस्‍त है कि‍ उन्‍हें सि‍र ऑंखों पर बैठा लेगी....................

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