Tuesday, 16 June 2015

एंटोनियो ग्राम्शी का Hegemony यानी वर्चस्ववाद का सिद्धांत: (फेसबुक से साभार - दि‍लीप मंडल)

तस्वीर1- कर्नाटक के मंगलोर के सुब्रह्मण्या मंदिर में ब्राह्मण भोजन कर रहे हैं. खाने के बाद वे पत्तल में काफी जूठन छोड़ देंगे.
तस्वीर-2- फिर आम जनता, स्त्री-पुरुष-बच्चे उन पत्तलों और जूठन पर लोटेंगे. इस उम्मीद में कि इससे पुण्य मिलेगा या चमड़े की बीमारी ठीक होगी...आदि आदि. 500 साल से होता है. 2013 तक तो हुआ ही है.
तस्वीर-3- जब कर्नाटक सरकार ने इस पर रोक लगाने की कोशिश की और एक जांच टीम जांच करने आई तो उन्हें पुरोहितों ने नहीं, उन लोगों ने पीटा, जो जूठन पर लेटने को अपना अधिकार मानते हैं.

एंटोनियो ग्राम्शी अपनी चर्चित थ्योरी Hegemony यानी वर्चस्व में बताते हैं कि यह दो तरीके से लागू होती है. Coercion यानी जोर-जबर्दस्ती से और Consent यानी जिसे दबाया जा रहा है, उसकी सहमति से. ग्राम्शी आगे कहते हैं कि जहां लोकतंत्र आ गया है वहां Hegemony जोर जबर्दस्ती से कहीं ज्यादा सहमति से लागू की जाती है. इसके लिए संस्कृति बड़ा औजार है.
मेरे ख्याल से आप लोगों को Theory of Hegemony समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई होगी. भारत में इतना सिंपल करके पढ़ाते क्यों नहीं हैं?
सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा तो एक पक्ष ने कहा कि हमें जूठन पर लोटने दिया जाए. हमारी परंपरा है. 2014 में इस पर कोर्ट से स्टे की एक खबर आई थी.

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