Tuesday, 16 June 2015

ऑंसू

ऑंसू बड़ी आश्‍चर्यजनक चीज है। मैं दो तरह के आंसुओं से ही परि‍चि‍त था - ग़म के आंसू और खुशी के ऑंसू। आंसू को वि‍रेचक भी कहा गया है। मेरा स्‍वयं का भी अनुभव है कि‍ आंसू बह जाने पर हृदय को बोझ हल्‍का होता है। यदि‍ यों कहें कि‍ आंसू ही ईश्‍वर से बातचीत का माध्‍यम है तो शायद गलत न हो। मेरे अनुसार भावुक होना इंसान होने की पहली शर्त है। ISIS के गला काटू जेहादी यदि‍ कुछ प्रति‍शत भावुक हो जायें तो शायद कुछ गले रि‍तने से बच जायें। पर धर्म को यूं ही अफीम नहीं कहा गया है। सबसे पहले ये आपकी भावुकता और इंसानि‍यत को ही हर लेता है।
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इसलि‍ए मि‍त्रों यदि‍ आंसू आयें तो छुपाये नहीं। आंसू आने के संकेत जैसे - गला रुंधना इत्‍यादि‍ उभरें, तो चुप न हो जायें। बह जाने दीजि‍ये अश्रुधारा। यद्यपि‍ हमारा जालि‍म समाज पुरुषों को सार्वजनि‍क रूप से रोने की इजाजत नहीं देता तथा उसे ''वि‍धवा वि‍लाप'', ''औरतों की तरह रो रहा है'', ''लड़कि‍यों की तरह शर्मा रहा है'' इत्‍यादि‍ घोर पुरुषवादी और सामंती कथनों से रोकने का प्रयत्‍न करता है। मान लीजि‍ये और अंतर्मन से स्‍वीकार कर लीजि‍ए कि‍ सार्वजनि‍क रूप से भावुक होना या रो पड़ने से आप प्राकृति‍क रूप से इंसान ही साबि‍त होते हैं। प्रकृति‍ ने अश्रु ऐसे ही नहीं बनाये।
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पर ध्‍यान रहे - वही ऑंसू आपको हल्‍का कर पाते हैं जि‍नका उद् गम नि‍र्मल हृदय हो। इन दि‍नों भारतीय टी.वी. संसार में आंसू सबसे ज्‍यादा बि‍क रहे हैं। रि‍यलटी शो इसका जमकर दोहन कर रहे हैं। जि‍तने ज्‍यादा आंसू, उतनी ज्‍यादा संवेदना, उतनी ही ज्‍यादा कमाई।
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और तो और इन दि‍नों कथावाचक भी अपनी दि‍व्‍य कथा में वे प्रसंग सबसे ज्‍यादा उछालते हैं जि‍नमें पब्‍लि‍क के रो पड़ने की संभावना हो जैसे - राम को वनवास, कृष्‍ण का गोकुल छोड़कर जाना, सीता मैया का परि‍त्‍याग, हुसैन की शहादत, ईसा को सूली पर चढाया जाना....पीछे से तरह-तरह के वाद्य यंत्रों से ऐसी धुन बजायी जाती है कि‍ पूरा माहौल ही गमगीन हो जाये। भक्‍तों का रो पड़ना कथा वाचक की सफलता माना जाता है।
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बाजार आधारि‍त पूंजीवाद की क्रूरतम सच्‍चाई है कि‍ उसने आंसू को भी कारोबार बना दि‍या है। लेकि‍न फि‍र भी जब दि‍ल भारी हो जाये तो नि‍र्मल अश्रुधारा प्रवाहि‍त करने में संकोच न करें। सबसे सामने न सही, अकेले में ही।

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