Tuesday, 16 June 2015

वि‍हान

यद्यपि‍ फेसबुक पर अंतर्तम भावनाओं की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ मुझे प्राय: बनावटी और व्‍यक्‍ति‍गत लगती है लेकि‍न फि‍र भी तुम्‍हारे 9वें जन्‍मदि‍न पर कुछ पंक्‍ति‍यां तो बनती ही हैं। ..............
तुम्हें बड़े होते देखना एक अद्भुत एहसास है। देख पा रहा हूं कि‍ अपने बचपन में मैं भी तुम्‍हारी तरह क्रि‍केट का दीवाना हुआ करता था, तुम्‍हारी ही तरह दि‍न-रात मेरे दि‍माग में लैग स्‍पि‍न, ऑफ स्‍पि‍न, चौका-छक्‍का घूमता रहता था, तुम्‍हारी ही तरह भावुक और शर्मीला हुआ करता था, तुम्‍हारी ही तरह मुझे नाचना पसंद नहीं था, .................देख पा रहा हूं कि‍ तुम मेरे ही जैसे हो।
तुम्‍हारी कई वि‍शेषतायें मुझे अपने बचपन में ले जाती हैं। तुम्‍हारे माध्‍यम से ही मैं अपने बचपन को पूर्ण कर रहा हूं। शायद कुछ दि‍न बाद तुम समझ सको कि‍ आखि‍र क्‍यों मैं तुम्‍हारे 5वें जन्‍मदि‍न पर रेलगाड़ी लाया था और आखि‍र क्‍यों तुम्‍हारे पास क्रि‍केट से जुड़ी सामग्रि‍यों की कोई कमी नहीं है।....................
शायद तुम्‍हें याद रह पाये (न भी रहे तो कोई बात नहीं) कि‍ आखि‍र क्‍यों मैं तुम्‍हें हर उस गति‍वि‍धि‍ में लि‍प्‍त होने देता हूं जो तुम्‍हें बेहद पसंद हैं। ताकि‍ तुम्‍हारे मन में अपने बचपन को लेकर कोई कसक न रह पाये। यद्यपि‍ मुझे भी अपने बचपन से कोई शि‍कायत नहीं है पर उस दौर में आज की तरह चाइनीज़ खि‍लौने और मोबाइल गेम मौजूद नहीं थे। मुझे याद है कि‍ मुझे उस समय बहुत अच्‍छा लगता था जब तुम्‍हारे दादा मुझे साइकिल के डंडे पर तौलि‍या लपेट कर बि‍ठाते थे और बाजार ले जाते थे...................मुझे नहीं पता कि‍ तुम्‍हारे मन में कौन सी बारीक स्‍मृति‍ शेष रह जायेगी इसलि‍ए अपनी ओर से तुम्‍हारे बचपन को समृद्ध करने का प्रयास करता हूं वि‍शेषकर खेलकूद से जुडी गति‍वि‍धि‍यों को..........
जी भर के जी लो अपने बचपन को.................... खूब खेलो, खूब कूदो, पूरी कॉलोनी में दौड़ते फि‍रो............

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